शब्द का अर्थ
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परिव्राज (क) :
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पुं० [सं० परि√व्रज्+घञ् (संज्ञा में), परि√व्रज्+ण्वुल्—अक] १. वह संन्यासी जो परिव्रज्या का व्रत ग्रहण करके सदा इधर-उधर भ्रमण करता रहे। २. संन्यासी। ३. बहुत बड़ा यती और परम हंस। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
परिव्राज (क) :
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पुं० [सं० परि√व्रज्+घञ् (संज्ञा में), परि√व्रज्+ण्वुल्—अक] १. वह संन्यासी जो परिव्रज्या का व्रत ग्रहण करके सदा इधर-उधर भ्रमण करता रहे। २. संन्यासी। ३. बहुत बड़ा यती और परम हंस। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |